ना रोको आज अश्को को, इन्हे ऐसे ही बहने दो,
जुबां से जो ना कह पाए इन्हे वो बात कहने दो,
हमे बिछड़े हुए वैसे तो जमाना हो चुका लेकिन,
मेरी हमराह है यादें इन्हे तो साथ रहने दो,
जुबा खामोश है लेकिन मुखातिब ये निगाहे है,
मेरी खामोशियो को आज कोई बात कहने दो,
ना पहले कि तरह हो तुम, ना उम्मीद कोई तुमसे,
खता किसकी सजा किसको, ये चर्चा आज रहने दो,
किसी दीवार से किसी हद से, ना रुकना तू अबके,
ये दरिया आंसुओ का है, इसे बेबाक बहने दो.....
इसे बेबाक बहने दो....!!!!
Na roko aaj ashko ko, Enhe aise hi behne do,
Juban se jo na keh pae, Enhe vo baat kehne do...
Hume bichde huye vaise to zamana ho chuka lekin,
Meri humraah hai yadein, Enhe to sath rehne do...
Juban khamosh hai lekin musibat ye nigahe hai,
Meri khamoshi ko aaj koi baat kehne do...
Na pehle ki tarha ho tum, Na umeed koi tumse,
Khataa kiski sajaa kisko, Ye charcha aaj rehne do...
Kisi diwar se kisi haad se, Na rukna tu aabke,
Ye dariya aansuo ka hai, Ese bebaak behne do...
Ese bebaak behne do...Ese bebaak behne do...
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ReplyDeleteवीरेन्द्र जी आपकी यह रचना बेहद सजग व आजकल की संबंधों का आपने बखूबी सदृश्य रचना की...ऐसी रचनाओं के माध्यम से भी आजकल के लोगों की मानसिकता का अनुभव हो जाता है....ऐसी ही रचनाओं का संकलन अब आप शब्दनगरी की ब्लॉगिंग वेबसाइट में भी प्रकाशित कर सकतें हैं...
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